Wednesday 11 December 2013

stomach worm

बच्चो की गुदा में चुरने (कृमि) पड़ना-
 about stomach worm
•    माता के दूषित  दूध पीने से या अजीर्ण में दूध पीने या भोजन करने से तथा प्रतिदिन खट्टा-मीठा भोजन what is stomach wormकरने से अथवा कड़ी, रायता आदि पतले पदार्थों के अधिक और निरंतर खाने से तथा मैदा गुड़ आदि मिले द्रव्यों के खाने से, कब्ज रहने से विरुद्ध भोजन दूध-दही, दूध-नमक आदि कई कारणों से पेट में आंतों में तथा मल में कीड़े (कृमि) पैदा हो जाया करते हैं। पुरीषज कृमि, कफज कृमि, रक्तज कृमि आदि कई प्रकार के होते हैं और इनकी लंबाई, चौड़ाई तथा रंग-रूप भी भिन्न-भिन्न प्रकार का होता है। अतः हम यहां उन सबका अलग-अलग खुलासा वर्णन न करके सिर्फ मलद्वार तथा मल में रहने वाले कृमि का ही वर्णन करेंगे। यह कीड़े जिन्हें हम चुरना या चिनूना भी कहते हैं। सिर्के या पानी के कीड़ों जैसे होते हैं। अक्सर यह कीड़े आंतों में होते हैं। गुदा में खुजली चलती है, कष्ट आदि चिन्ह होते हैं। यह छोटे-छोटे सूत्र जैसे की़ड़े होते हैं, जो दल बांधकर गुदा के पास में रहते हैं तथा कभी-कभी मूत्राशय की तरफ भी झपट मार देते हैं, फिर इन स्थानों में जलन होती है।
•    नाक के जड़ भाग में तथा गुदा द्वार में खुजली चलती है, सांस में बदबू आती है, शौच के समय बड़ा दर्द होता है और रात को गुदा की खुजली के मारे नींद हराम हो जाती है। कभी-कभी मल के साथ गुदा मार्ग से बाहर भी निकल जाते हैं। पेट फूलना, दर्द, दांत पीसना, सोते-सोते जग उठना, नासिकाग्र और गुह्वाद्वार में खुजली, पेट की सख्ती और गर्मी, शरीर शीर्ण, पीलापन, आंखों का फैलाव, आम मिश्रित मल, कभी-कभी बेहोशी होना, लार बहना आदि चिन्ह (उपद्रव) होते हैं। यह कीड़ा चावल की तरह सफेद तथा उतना ही बड़ा पैदा होकर बाद में बढ़ते हुए तीन चार इंज तक लंबा हो जाता है तथा फिर यह पेट में मुंह की तरफ चढ़कर केचवे का रूप धारण कर लेता है और इसकी लंबाई 4 से 12 इंच तक हो जाती है।
चुरना (कृमि) निवारण योग-
•    अनार का छिलका पानी में औटाकर थोडा़-थोड़ा गुनगुना गर्म करके प्रातः सायं पिलाने से 3 दिन में चुरने मर जाते हैं। तत्पश्चात प्रतिमास बच्चे को दो बूंद के हिसाब से शुद्ध किया हुआ अरण्डी का तेल गर्म दूध में पिला देने से पेट साफ हो जाएगा।stomach worm treatment
•    पलास पापड़ा, नीम की छाल, सहजन की जड़, नागरमोशा, देवदारू, बायबिंडग। इनके एक टंक चूर्ण का क्वाथ 7 दिन पिलाएं तो बालक के पेट की कृमि नाश होकर ज्वर भी शांत हो जाएगा। पानी के संग हींग गुदा में लगाना व पिलाना भी लाभकर है।
•    अरण्डी के तेल को गर्म पानी के साथ देना चाहिए अथवा अरण्डी का रस शहद में मिलाकर पिलाना चाहिए।
•    टेसू के फूस का चूर्ण शहद के साथ देना या दूध में घिसकर पिलाना चाहिए। बडे़ बालकों को टेसू के बीज और बायबिडंग 3-3 माशा लेकर चूर्ण बना नींबू के रस या शहद के साथ चटाना चाहिए।
•    अर्क पत्रों का चूर्ण गुड़ के साथ मिलाकर देने से बच्चों के छोटे-बड़े हर प्रकार के चुरने कृमि नष्ट हो जाते हैं।
•    खुरासानी अजवायन 6 माशे पीसकर बासी पानी से प्रातः लें तो उदर कृमि जाए अथवा बायबिडंग का चूर्ण मधु में मिलाकर खाए तो उदरकृमि नष्ट हो जाते हैं। चिड़िया की बीट का चूर्ण गुदा में लगा दें तो कृमि नष्ट हो जाते हैं।
•    एरंड के पत्रों का स्वरस अथवा धतूरे के पत्रों का स्वरस को तीन दिन तक 3-3 बार मल स्थान में लगाएं तो बच्चों का उदर कृमि (चुरना) नष्ट होकर रोग शान्त होता है।
•    खजूर के पत्तों को 2 तोला लेकर आधा सेर पानी में क्वाथ करें। आधा पाव जल शेष रह जाने पर उतारकर छानकर उसे 24 घंटे रख छोड़ें। बाद में 6 माशा मधु मिलाकर पिएं। इस प्रकार 7 दिन करने से उदर के दारुण कृमियों का भी नाश हो जाएगा।
•    पक्की खजूर एक छटांक खाकर ऊपर से दो नींबू भी चूस लें तो सब प्रकार का कृमिरोग नाश हो जाता है और यदि कोई 3 माशा कमेला को 6 तोला गुड़ में मिलाकर खाए तो उसका कृमि रोग 3 दिन में ही नष्ट हो जाता है।
•    बच्चों को जन्म घुट्टी के साथ गौमूत्र मिलाकर पिलाने से तथा बड़ों को बायबिडंग के चूर्ण को गौमूत्र के साथ देने से पेट के तथा गुदा के कृमि नष्ट हो जाते हैं।
•    रोजाना 2-3 तोला गौमूत्र पीने से ही 4-5 दिन में कृमिरोग का नाश हो जाता है।
•    अजवायन, बायबिडंग, पलाश पापड़ा तथा सुहागा। इनके चूर्ण को गुड़ मिलाकर खाने से उदर कृमि का नाश हो जाता है।
•    तारपीन का तेल 8-10 बूंद बताशे में डालकर दें।

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