Thursday, 28 November 2013

indian gooseberry




आंवले के प्रयोग
वमन (उल्टी) :
  •  उल्टी तथा हिचकी में आंवले का 15-20 मिलीलीटर रस, 8-10 ग्राम मिश्री मिलाकर देने से लाभ मिलता है। इसे दिन में 3-4 बार लेना चाहिए।

  • आंवले के पेड़ की छाल और पत्तों का काढ़ा को 40 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह और शाम पीने से गर्मी की दस्त और उल्टी बंद दूर जाती है।
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  • आंवले के 20 मिलीलीटर रस में एक चम्मच शहद और 10 ग्राम सफेद चंदन का चूर्ण मिलाकर पिलाने से उल्टीबंद हो जाती है।
  • पिप्पली का बारीक चूर्ण और आंवले के रस में थोड़ा सा शहद मिलाकर चाटने से उल्टी आने में लाभ होता है।
  •  वात, पित्त, कफ से पैदा होने वाली उल्टी में आंवला तथा अंगूर को पीसकर 60 ग्राम खांड, 60 ग्राम शहद और 160 मिलीलीटर पानी मिलाकर कपड़े से छानकर पीएं।
  •  चंदन और आंवले का चूर्ण बराबर मात्रा में लेकर एक-एक चम्मच चूर्ण दिन में 3 बार चीनी और शहद के साथ चाटें। इससे गर्मी के कारण होने वाली उल्टी दूर हो जाती है।
  • आंवले के रस में शहद और 20 ग्राम सफेद चंदन का बुरादा मिलाकर चाटने से उल्टी दूर हो जाती है।
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संग्रहणी : मेथी दाना के साथ आंवलों के पत्तों का काढ़ा बना लें। इसे 15 से 20 मिलीलीटर की मात्रा में दिन में 2-3 बार पिलाएं। इससे संग्रहणी मिट जाती है।
मूत्रकृच्छ (पेशाब में कष्ट या जलन होने पर) :

  •  आंवले के 25 मिलीलीटर रस में इलायची का चूर्ण डालकर दिन में 3-4 बार पीने से मूत्रकृच्छ दूर होता है।
  • आंवले की ताजी छाल के 15-20 मिलीलीटर रस में 2 ग्राम हल्दी और 10 ग्राम शहद मिलाकर सुबह-शाम पिलाने से मूत्रकृच्छ में लाभ मिलता है।

विरेचन (दस्त कराना) : आंवले के 20-40 मिलीलीटर रस में पर्याप्त मात्रा में शहद और चीनी को मिलाकर सेवन कराना चाहिए। इससे दस्त आ जाते हैं।
अर्श (बवासीर) : -

  •  सूखे आंवले को बारीक पीसकर प्रतिदिन सुबह-शाम एक चम्मच दूध या छाछ में मिलाकर पीने से खूनी बवासीर ठीक होती है।
  •  बवासीर के मस्सों से अधिक खून के बहने में 7 से 8 ग्राम आंवले के चूर्ण का सेवन दही की मलाई के साथ दिन में 2-3 बार करना चाहिए।
  •  आंवलों को अच्छी तरह से पीस लें, फिर उसे एक मिट्टी के बर्तन में लेप कर दें। फिर उस बरर्तन में छाछ भरकर उस छाछ को रोगी को पिलाएं। इससे बवासीर में लाभ मिलता है।
  •  सूखे आंवलों का चूर्ण 15-20 ग्राम लेकर 250 मिलीलीटर पानी में मिलाकर मिट्टी के बर्तन में रात भर भिगोकर रखें। दूसरे दिन सुबह उसे हाथों से मसलकर छान लें तथा छने हुए पानी में 5-6 ग्राम चिरचिटा की जड़ का चूर्ण और 50-60 ग्राम मिश्री मिलाकर पीएं। इसको पीने से कुछ दिनों में ही बवासीर ठीक हो जाती है और मस्से गिर जाते हैं।

रक्तगुल्म (खून की गांठे) : आंवले के रस में कालीमिर्च डालकर पीने से रक्तगुल्म दूर हो जाता है।
शुक्रमेह :धूप में सुखाए हुए गुठली रहित आंवले के 15 ग्राम चूर्ण में दोगुनी मात्रा में मिश्री को मिला लें। इसे 250 मिलीलीटर तक ताजे पानी के साथ 15-20 दिनों तक लगातार सेवन करें। इससे स्वप्नदोष, शुक्रमेह आदि विभिन्न रोगों में लाभ मिलता है।
पित्तदोष : गाय का घी, आंवले का रस, शहद  इन सभी को एक समान मात्रा में लेकर आपस में घोंटकर लें। इससे पित्तदोष तथा रक्तविकार के कारण आंखों के रोग दूर हो जाते हैं।
खूनी अतिसार (रक्तातिसार) : यदि दस्त के साथ खून आता हो तो आंवले के 15-20 मिलीलीटर रस में 15 ग्राम शहद और 5 ग्राम घी मिलाकर रोगी को पिलाएं और ऊपर से बकरी का दूध 100 मिलीलीटर तक दिन में 3-4 बार पिलाएं।
प्रमेह (वीर्य विकार) :

  • आंवला, दारू-हल्दी, हरड़, बहेड़ा, नागर-मोथा, देवदारू इन सबको समान मात्रा में लेकर इनका काढ़ा बना लें। इसे 15-20 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह-शाम प्रमेह के रोगी को पिलाएं।
  • नीम की छाल, गिलोय, आंवला, , परवल की पत्ती को बराबर-बराबर 50 मिलीलीटर की मात्रा में लेकर आधे लीटर पानी में रातभर भिगो दें। इसे सुबह उबालें, जब यह चौथाई मात्रा में शेष बचे तो इसमें 2-3 चम्मच शहद मिलाकर दिन में 3-4 बार सेवन करें। इससे पित्तज प्रमेह दूर हो जाती है।
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