दांतों की संरचना-Teeth structure
दांत हमारे शरीर के सबसे महत्वपूर्ण अंगों में से एक हैं।
हमारे शरीर के अधिकतर अंग केवल एक-दो कार्य ही करते हैं। वहीं दांत कई प्रकार के कार्य
करते हैं। दांत हमारे भोजन को चबाने का कार्य तो करते ही हैं इसके साथ ही बोलने
तथा सही आवाज निकालने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। दांत टूट जाने के बाद
मुंह की बनावट तथा सुन्दरता नष्ट हो जाती है। मुंह की सुन्दरता, स्वास्थ्य तथा
मधुर आवाज का मूल तन्त्र हमारे दांत ही है। वृद्धावस्था में दांतों के उखड़ जाने
के कारण ही आवाज खराब हो जाती है। आगे के केवल एक-दो दांत टूट जाने से ही बोलते
समय टूटे हुए दांत के स्थान से वायु निकल जाती है, जिसके कारण जो शब्द बोला जाता
है उसका उच्चारण सही तरह से नहीं हो पाता। अंदर के दांतों के टूट जाने पर गाल
अन्दर की ओर धस जाते हैं तथा मुंह की सुन्दरता ही खराब हो जाती है और चेहरे की त्वचा
लटक जाती है। इसके अलावा दांतों के टूट जाने पर भोजन को अच्छी तरह से चबाया नहीं
जा सकता जिससे बिना चबाया हुआ भोजन ही निगलना पड़ता है।
भोजन चबाने में दांतों को अधिक मेहनत
करनी पड़ती है। यदि दांत गंदे तथा दूषित होते हैं तो दांतों की गन्दगी भोजन, पानी
और लार के साथ शरीर में प्रवेश कर जाती है। जिसके कारण शरीर में अनेक रोग उत्पन्न
हो जाते हैं। एक साधारण व्यक्ति को दांतों के बारे में अधिक जानकारी नहीं होती है
जिससे वह दांतों की सही देखभाल नहीं कर पाता है। आंतों के समान ही दांत भी हमारे
शरीर की हमेशा सेवा करते रहते हैं। इसलिए दांतों की सही देखभाल बहुत ही जरूरी है
लेकिन लोग दांतों पर तब ध्यान देते हैं जब दांत रोगग्रस्त हो जाते हैं।

अस्थाई दांत (Deciduous Teeth)- जन्म के बाद निकलने वाले दांत अस्थाई होते हैं। आम भाषा में
इन दांतों को दूध के दांत या अस्थाई दांत कहा जाता है जबकि अंग्रेजी भाषा में
डेसिडुअस टीथ कहा जाता है। बच्चे के जन्म के समय उसके मुंह में दांत नहीं दिखाई
देतें जबकि वे मसूढ़ों में छुपे होते हैं। जैसे-जैसे बालक बड़ा होता जाता है उसके
ये दूध के दांत निकलने लगते हैं। सामान्यतः जब बच्चा 6-7 महीने का हो जाता है तो
उसके दांत मसूढ़ों से बाहर निकलने लगते हैं और लगभग दो वर्ष की आयु तक उसके सभी
दांत निकल आते हैं।

अस्थाई दांत (Deciduous Teeth)
1.
ऊपर का तथा नीचे का जबड़ा
2.
बन्द जबड़े (Occulusion)
1.
ऊपर के कर्तनक
2.
नीचे के कर्तनक
3.
ऊपर के भेदक
4.
नीचे के भेदक
5.
ऊपर के चर्वणक
6.
नीचे के चर्वणक
अन्तिम दो स्थाई दाढ़ें 20 बीस वर्ष
की आयु तक निकलती हैं जिन्हें आम बोलचाल की भाषा में अक्कल दाढ़ (Teeth of Wisdom) कहा जाता है। इन स्थाई दांतों तथा दूध के दांतों में
एक मुख्य अन्तर यह होता है कि दूध के दांतों की संख्या 20 होती जबकि स्थाई दांतों
की कुल संख्या 32 होती है। इसके अतिरिक्त दूसरा अन्तर यह है कि दूध के दांतों के टूटने
पर उनकी जगह नए ‘स्थायी दांत’ निकल आते हैं, लेकिन यदि रोग या चोट आदि के कारण कोई एक ‘स्थायी दांत’ टूट जाए तो वह फिर दोबारा
नहीं निकलता है। इसलिए प्रारम्भ से ही दांतों की उचित देख-रेख और किसी अच्छे टूथ
पेस्ट, मंजन, टूथ पाउडर अथवा दातुन से रोजाना सुबह-शाम दांतों की अच्छी तरह से सफाई
की जाए तो दांत वृद्धावस्था तक स्वस्थ और मजबूत बने रहते हैं ऐसा न करने पर
युवावस्था में ही सारे दांत गिर जाते हैं।
स्थाई दांत (Permanent Teeth)- दो-तीन वर्ष की आयु तक बालक के सभी अस्थाई दांत दांत निकल आते
हैं। जिनकी कुल संख्या 20 होती है। इसके बाद धीरे-धीरे करके जब बालक सातवें वर्ष की
आयु में प्रवेश करता है तो अस्थाई दांत जबड़े से अपनी पकड़ छोड़ना शुरू कर देते हैं
जिससे अस्थाई दांत हिलने लगते हैं। यह किसी चोट या रोग के कारण नहीं होता बल्कि
अस्थाई दांत के नीचे स्थाई दांत बनने के कारण होता है। धीरे-धीरे नीचे बनने वाले
नये दांत का आकार बढ़ने लगते हैं जिससे अस्थाई दांत बालक के जबड़े से स्वयं निकल
जाते हैं और उसकी जगह पर जीवन भर रहने वाले स्थाई दांत निकल आते हैं। स्थाई दांत 6-7
वर्ष की आयु में निकलने लगते हैं और दो वर्ष से भी कम समय में सभी स्थाई दांत निकल
ही आते हैं और दूध के दांत गिर जाते हैं। इसके अलावा जबड़े में अन्दर की ओर कुछ
अतिरिक्त दांत, जिन्हें दाढ़ कहते हैं, निकल आती हैं।
दांतों के मुख्य भाग (Parts of a tooth)- आमतौर पर दांत का जितना हिस्सा जबड़े के बाहर दिखलाई देता है
लोग उसे ही वास्तविक दांत मानते हैं परन्तु यह एक भूल है। जिस प्रकार किसी पेड़ का
तना और टहनियां ही सम्पूर्ण पेड़ का एक अविभाज्य अंग है लेकिन पेड़ का जीवन इसकी
जड़ों पर निर्भर होता है, ठीक उसी प्रकार जितना दांत जबड़े से बाहर निकला हुआ
दिखाई देता है उससे भी कई गुना बड़ा भाग जबड़े के अन्दर धंसा होता है। इस प्रकार
संपूर्ण दांत को मोटे तौर पर तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है।
1.
दांत का पहला वह भाग जोकि मसूढ़ों से बाहर निकला दिखाई देता
है दंत-मुकुट (Crown) कहलाता हैं।
2.
इसका दूसरा भाग जोकि मसूढ़ों के अन्दर घुसा रहता है और बाहर
से दिखाई नहीं देता। इसे नेक अथवा सरवेस्क (Neck
or Servax)
कहते हैं।
3.
दांत का सबसे आखिरी भाग या सिरा, सबसे नीचे वाला हिस्सा होता है,
जिसे बोलचाल की भाषा में दांत की जड़ (Tooth
root) कहा जाता
है। यह जड़ मसूढ़ों में काफी गहराई तक धंसी रहती है जिसके कारण हिलते हुए दांत को
निकालने के लिए डेण्टिस्ट को काफी मेहनत करनी पड़ती है इसके अलाव दांत निकलने के
बाद गहरा घाव भी हो जाता है।
इस प्रकार दांतों की मजबूती दांतों
की जड़ पर निर्भर करती है जबकि प्रत्येक दांत का केवल बहुत थोडा सा भाग मसूढ़ों से
बाहर निकला रहता है और उससे ही भोजन खाने, चबाने या काटने का काम लिया जाता है।
दांतों की बनावट के बारे में यह बात ध्यान
देने योग्य है कि प्रत्येक दांत सामान्यतः तीन प्रकार की परतों (Layers) मिलकर बना होता है।
(1) दांतों की सबसे ऊपर की परत एनेमिल (Enamel) परत कहलाती है। स्वस्थ दांत में यह परत काफी चमकीली श्वेत
तथा मजबूत होती है। इसी के कारण दांत रोगों से बचे रहते हैं और सुन्दर एवं आकर्षक
लगते हैं।
(2) एनेमिल (Enamel) की परत के नीचे जो दूसरी
परत (Layer) होती है उसे ‘डैन्टाइन’ (Dentine) अर्थात दांत की हड्डी कहा जाता है।
(3) इसके बाद, सबसे नीचे वाली परत ‘बोनी लेयर’ (Bony Layer) कहलाती है। ये दोनों ही परतें एनेमिल (Enamel) की अपेक्षा काफी मुलायम परन्तु शरीर की अन्य हड्डियों से
अधिक कठोर होती हैं। यदि किसी कारण से एनेमिल (Enamel)
की परत क्षतिग्रस्त हो जाए तब कुछ समय बाद ये दोनों परतें भी टूट-फूट जाती हैं
जिससे दांत गिर जाते हैं।
एनेमिल (Enamel) और हड्डी की तीन-तीन परतें होने के बावजूद प्रत्येक दांत
अन्दर की ओर ‘पोला’ अर्थात
खोखले होता है जिसे रक्त-कोब (Pulp cavity) कहते है। इसके अन्दर ‘दन्त मज्जा’ होती है। इसी दंत-मज्जा की छोटी-छोटी
सूक्ष्म नाडियों के द्वारा ही दांतों में रक्त का संचार होता रहता है जिससे दांत
स्वस्थ बने रहते हैं। वास्तव में ऊपर से सीधे सपाट दिखाई देने वाले दांतों की रचना
अत्यन्त जटिल है। कुशल दन्त-चिकित्सक बनने और दंत-चिकित्सा के क्षेत्र में सफलता
प्राप्त करने के लिए दांतों की रचना का ज्ञान होना बहुत ही आवश्यक है।
दांतों की संरचना- दांत जबड़े की हड्डियों में
स्थापित होते हैं। ये हड्डियां दांतों के आने के साथ ही विकसित होती हैं तथा ‘पैरीडेंटल रेशों’ के माध्यम से जबड़ों से
जुड़ी रहती हैं।
जबड़े, दांत तथा जीभ मिल-जुलकर हमारे
शरीर के कई महत्त्वपूर्ण कार्य पूरा करते हैं। खाने को चबाना व निगलना, आवाज का
बनाना, स्वाद और छूने का अहसास आदि कार्यों के लिए अच्छे मुंह व स्वस्थ दांत तथा
जबड़े का होना आवश्यक है।
मसूढ़ें दांतों की जड़ों को मजबूती
देते हैं। ये दांत के अत्यंत संवेदनशील भाग को गरम ठंडे पदार्थों के प्रभाव और चोट
इत्यादि से बचाव करते हैं। स्वस्थ मसूढ़ों का रंग गुलाबी होता है। संक्रमण की
अवस्था में मसूढ़े लाल रंग के हो जाते हैं। ब्रश करने पर मसूढ़ों से खून निकल सकता
है।
दांतों को तीन भागों में विभाजित
किया गया है-
जड़- इसी के सहारे दांत जबड़ों में
जकड़ा रहता है।
गर्दन- मसूढ़ों में छिपा हुआ भाग।
शीर्ष- जो मुंह खोलने पर दिखता है।
प्रत्येक दांत के तीन परत होती हैं- इनेमिल, पल्प और डेंटीन।
इनेमिल- दांत का शीर्ष इनेमिल से ढका रहता
है। यह शरीर का सबसे सख्त ऊतक है। यही भाग दांत की टूट-फूट व नरम डेंटीन व पल्प की
रक्षा करता है। क्षत-विक्षत इनेमिल में रक्त प्रवाह न होने के कारण भराव नहीं हो
पाता। जबकि कोशिकाओं के जन्म के लिए रक्त प्रवाह आवश्यक होता है।
दांतों की जड़ पर इनेमिल के कवच के
स्थान पर सीमेंटम की परत चढ़ी होती है।
पल्प- दांत के मध्य में स्थित नरम ऊतकों को
पल्प कहा जाता है। यहीं पर तंत्रिकाओं का संग्रह भी होता है जिससे दांत गर्म-ठंडे
के प्रति संवेदनशील भी होता है।
रक्त
वाहिनियां दांतों को रक्त पहुंचाती हैं तथा लसिका वाहिनियां श्वेत रक्त कणिकाओं को
पहुंचाकर, दांतों को संक्रमण से बचाती हैं। कीड़े लगे दांत का दर्द पल्प में ही
होता है।
डेंटीन- यह हल्का-पीला ऊतक होता है जोकि इनेमिल
की निचली सतह है। दांतों का अधिकांश भाग इसी से बना होता है। डेंटीन मुलायम होता।
डेंटीन के मध्य से पल्प ही इसको पोषण पहुंचाता है।
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